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साढे छत्तिसलाख सुपूरब, राजभोग वर भोग।
कछु कारन लखि माघशुकल, द्वादशिकों धारो जोग ॥ पष्टम नैम समापत करि लिय, इंद्रदत्तघर छीर। __ जय धुनि पुष्प रतन गंधोदक, वृष्टि सुगंध समीर ॥३॥ _ॐ हीं माघशुक्लद्वादश्यां दीक्षाकल्याणप्राप्ताय श्रीअभिनंदनजिनेन्द्राय अर्घ ॥ ३॥ पोप शुकल चौदशिको घाते, घातिकरमदुखदाय । ___उपजायो वरबोध जासको, केवल नाम कहाय ॥ समवसरन लहि बोधिधरम कहि, भव्यजीवसुखकंद ।
मोकों भवसागरतें तारो, जय जय जय अभिनंद ॥४॥ ॐ हीं पौपशुक्लचतुर्दश्यां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीअभिनंदनजिनेन्द्राय अर्घ ॥ ४ ॥ जोगनिरोध अघातिघाति लहि, गिरसमेदतै मोख ।
माससकल सुखराश कहे बैशाखशुकल छट चोख ॥
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