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चतुरनिकाय आय तित कीनो, भगतभाव उमगाय ।
हम पूर्जे इत अरघ लेय जिमि विधनसघन मिट जाय ॥५॥ ॐ हीं वैशाखशुक्पष्ठीदिने मोक्षमङ्गलप्राप्ताय श्रीअभिनंदनजिनेन्द्राय अर्घ ॥५॥
जयमाला दोहा-तुंग सु तन धनु तीनसौ, औ पचास सुखधाम । कनकबरन अवलौकिकैं, पुनि पुनि करू प्रणाम ॥१॥
छंद लक्ष्मीधरा।। सच्चिदानंद सद्ज्ञान सद्दर्शनी । सत्स्वरूपा लई सत्सुधासर्सनी॥ सर्वआनंदकंदा महादेवता । जास पादाब्ज सेवे सबै देवता ॥२॥ गर्भ औ जन्मनिःकर्मकल्यानमें । सत्त्वको शर्म पूरे सवै थानमें ॥ वंशइक्ष्वाकमें आयु ऐसे भये । ज्यों निशाशमें इंदु स्वच्छ ठये ॥३॥
लक्ष्मीवती छंद। होत वैराग लौकांतसुर बोधियो।
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