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छंद घत्तानंद। यह अरज हमारी सुनि त्रिपुरारी, जनम जरा मृति दूर करो। शिवसंपति दीजे ढील न कीजे, निज लख लीजे कृपा धरो॥ १३ ॥ ___ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्राय महाधु निर्वपामीति स्वाहा ॥ छंद आर्या-जो ऋषभेश्वर पूजै, मनबचतनभाव शुद्ध कर प्रानी॥ सो पोवै निश्च सौं, भुक्ति औ मुक्ति सारसुखथानी ॥ १४॥
__पुष्पाञ्जलिं क्षिपेत। इत्याशीर्वादः
श्रीअजितनाथपूजा। छंद-त्याग वैजयंत सार सारधर्मके अधार, जन्मधार धीर नग्र सुष्टुकौशलापुरी। अष्ठदुष्टनष्टकार मातु वैजयाकुमार, आयु लक्ष पूर्व दक्ष है बहत्तरैपुरी॥ ते जिनेश श्री महेश शत्रु के निकंदनेश, अत्र हेरियेसुदृष्टि भक्तपै कृपा पुरी। आय तिष्ट इष्टदेव मैं करों