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वासवशतवंदा धरि आनंदा, ज्ञान अमंदा नंदा जू ॥ १॥
छंद मोतीदाम।। त्रिलोकहितंकर पूरन पर्म। प्रजापति विष्ण चिदातम धर्म ॥ जतीसुर ब्रह्मविदांबर बुद्ध । बृषक अशंक क्रियाम्बुधि शुद्ध ॥ २॥ जबै गर्भागममंगल जान । त. हरि हर्ष हिये अति आन ॥ पिताजननीपदसेव करेय । अनेक प्रकार उमंग भरेय ॥३॥ जन्मे जब ही तब ही हरि आय । गिरेंद्रविषै किय न्हौंन सुजाय ॥ नियोग समस्त किये तित सार । सुलाय प्रभू पुनि राज अगार ॥४॥ पिताकर सोंपि कियो तित नाट । अमंद अनंद समेत विराट ॥ सुथानपयान कियो फिर इंद। इहां सुर सेव करें जिनचंद ॥५॥ कियौ चिरकाल सुखाश्रित राज । प्रजा सब आनँदको तितसाज ॥ सुलिप्त सुभोगनिमें लखि जोग । कियो हरिने यह उत्तम योग॥६॥