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ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णनवमीदिने जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीवृषभनाथाय अर्घ निर्य० ॥२॥ असित नौमि सुचैत धरे सही । तपविशुद्ध सबै समता गही॥ निज सुधारससों झरलाइयो। हम जजै पद अर्घ चढ़ाइयो॥३॥ ___ॐ हीं चैतकृष्णनवमीदिने दीक्षामंगलप्राप्ताय श्रीआदिनाथाय अर्घ निर्व० ॥३॥
असित फागुन ग्यारसि सोहनों । परम केवलज्ञान जागो भनों ॥ हरि समूह जजै तहँ आइकैं। हम जजै इत मंगल गाइकैं॥४॥ ___ॐ हीं फाल्गुनकृष्णकादश्यां शानसाम्राज्यमंगलप्राप्ताय श्री वृषभनाथाय अर्घ ॥४॥
असित चौदसि माघ विराजई । परम मोक्ष सुमंगल साजई ॥ हरिसमूह जजे कैलाशजी । हम जजै अति धार हुलासजी॥५॥ ___ॐ ह्रीं माघ कृष्णचतुर्दश्यां मोक्षमंगल प्राप्ताय श्रीवृषभनाथाय अर्घ निवं ॥५॥
जयमाला।
छंद घत्तानंद। जय जय जिनचंदा आदिजिनंदा, हनि भवफंदा कंदा जू।
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