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सुरस पक्क मनोहर पावने । विविध ले फल पूज रचावने ॥ त्रिजगनाथ कृपा अब कीजिये । हमहि मोक्ष महाफल दीजिये ॥८॥
____ॐ हीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्रभ्यो मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामि ॥ जलफलादि समस्त मिलायकैं। जजत हों पद मंगल गायके । भगतवत्सल दीनदयालजी। करहु मोहि सुखी लखि हालजी ॥६॥ ॐ ह्रीं श्रीवृषभदेवजिनेन्द्रभ्यो अनयंपदप्राप्तये अघ्र निवंपामि ॥
पंचकल्याणक ।
छंद द्रुतविलंवित तथा सुन्दरी। असित दोज अषाढ़ सुहावनी । गरभमंगलको दिन पावनी ॥ हरि सची पितुमातहिं सेवही । जजत हैं हम श्रीजिनदेवही ॥१॥ ॐ हीं आपाढकृष्णद्वितीयादिने गर्भमंगलप्राप्ताये श्रीपभदेवाय अभ्यं निव॑पामीति खाहा ॥१॥ असित चैत सुनौमि सुहाइयो । जनममंगल तादिन पाइयो। हरि महागिरिपै जजियो तबै । हम जजै पदपंकजको अबै ॥२॥