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शिरिणी।
जजे हैं जो पानी दाब अरु भावादि विधिलों।
कर नानाभांती भगति शुति ओ नौति सुधितों ॥ लहे शक्री चक्री सकल सुख सोभाग्य तिनको। तथा मोनं जावे जजत जन जो मल्लिजिनको ॥ २२॥
प्रत्याशीर्वादः पुष्पाजलिं क्षिपेत् । श्रीमुनिसुव्रतनाथपूजा।
मत्तागयन्द।
प्रानत म्बग विहाय लियो जिन, जन्म सुराजगृहीमहँ आई। श्रीसुमित्त पिता जिनके, गुनवान महापवमा जसु माई ॥ वीन धन तनु श्याम छवी, कछ अंक हरी वर वंश बताई। सो मुनिसुव्रतनाथ प्रभू कह, थापतु हों इत प्रीनि लगाई ॥१॥
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