________________
पृ .
ॐ ह्री श्रीमुनिसुव्रतजिन ! अत्र अवता अवतर । संवौषट् ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिन ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिन ! अत्र मम सन्निहितो भव भव । वपट् ॥
आष्टक गीतिका-उज्जल सुजल जिमि जस तिहारौ, कनक झारीमें भरों। जरमरन जामन हरन कारन, धार तुमपदतर करों॥ शिवसाथ करत सनाथ सुव्रतनाथ, मुनिगुन माल हैं। तसु चरन आनंदभरन तारन, तरन विरद विशाल हैं ॥१॥ ॐ ह्रीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥ भवतापघायक शॉतिदायक, मलय हरि घसि ढिग धरों। गुनगाय शीस नमाय प्रजन, विघनताप सबै हरों॥शिवा२॥ ॐ हीं श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय भवतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ॥ तंदुल अग्वंडित दमक शशिसम, गमक जुत थारी भरों।