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तप तुरंग असवार धार, तारन विवेक कर ।
ध्यान शुक्ल असि धार, शुद्ध सुविचार सुबखतर ॥ भावन सेना धरम, दशों सेनापति थापे । रतन सोन धर सकति, मंत्रि अनुभो निरमापे ॥ सत्तातल सोहं सुभट धुनि त्याग केतु शत अग्र धरि । इहविध समाज सज राजकों, अरजिन जाते करम अरि ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीभरनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवोषट् ॥ १ ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भव भव । वषट् ॥ ३॥
अष्टक
छन्द त्रिभंगी ( अनुप्रयासक मात्रा ३२ - जगनवर्जित ) कनमनिमय भारी, हगसुखकारी, सुरसरितारी नीरभरी ॥ मुनिमनसम उज्जल, जनमजरादल, सो लै पदतल, धार करी ॥
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