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प्रभु दीनदयालं, अरिकुलकालं, विरदविशालं सुकुमालम् । हनि मम जंजालं, हे जगपाल, अरगुनमालं वरमालम् ॥१॥ ॐ हीं श्रीअरनाथजिनेन्दाय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥२॥ भवताप नशावन विरद सुपाव, सुनि मन भावन मोद भयो। तातें घसि बावन, चंदन पावन, तरहिं चढ़ावन उमगि अयो॥प्रभु०॥ ___ॐ ह्रीं श्रीअरनाथ जिनेन्द्राय भवताप विनाशनाय चंदन ॥२॥ तंदुल अनियारे, श्वेतसँवारे, शशिदुति टारे, थार भरे। पद अखय सुदाता, जगविख्याता, लखि भवताता, पुंजधरे॥प्रभु० ___ॐ हीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥३॥
सुरतरुके शोभित, सुरन मनोभित, सुमन अछोभित, लै आयो। | मनमथके छेदन, आप अवेदन, लखि निरवेदन, गुन गायौ ॥ प्रभु. ____ॐ ह्रीं श्रीअरनाथजिनेन्द्राय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ॥४॥ नेवज सज भक्षक, प्रासुक अक्षक, पक्षकरक्षक, स्वक्ष धरी।