________________
All जजे हरि हर्षित मंगल गाय। समर्चतु हौं सु हिया वचकाय ॥५॥ AI ॐ हीं वैशास्त्रशुलपतिपद मोक्षमङ्गलप्राप्ताय श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अब नि०
जयमाला
अरिल्ल छन्द (मात्रा २१ रूपकालंकार) खट खंडनके शत्रु राजपदमें हने। धरि दीक्षा खटखंडन पाप तिन्हें दर्ने । त्यागि सुदरशन चक्र धरमचक्री भये । करमचक्र चकचूर सिद्ध दिढ़ गढ़ लये ॥१॥ ऐसे कुथ जिनेशतने पदपनका । गुन अनंत भंडार महासुखसमकों ॥ पूजों अरघ चढ़ाय पूरणानंद हो। चिदानन्द अभिनन्द इंदगनवंद हो ॥२॥
परि छंद (मात्रा १६ )। जय जय जय जय श्रीकुंथुदेव । तुम ही ब्रह्मा हरि त्रिवुकेव ॥ जय पुद्धि विदांबर विष्णु ईस । जय रमाकत शिवलोक शीस ॥ ३ ॥ जय दयाधुरंधर सृष्टिपाल। जय जय जगवंधू सुगुनमाल ॥ सरवारथसिद्धविमान छार । उपजे गजपुरमें गुन अपार ॥ ४॥ सुरराज कियो