________________
सुसावनको दशमी कलि जान । तज्यो सरवारथसिद्ध विमान ॥ भयो गरमागममंगल सार । जज हम श्रीपद अष्टप्रकार ॥१॥ ____ ॐ हीं श्रावणकृष्णदशम्यां गर्भमंगलप्राप्तये श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि० ॥१॥ महा बयशाख सु एकम शुद्ध । भयो तब जन्मतिज्ञान समुद्ध ॥ कियो हरि मंगल मंदिरशीस । जजै हम अत्र तुम्हें नुतशीस ॥२॥ ___ॐ हीं वैशाखशुक्ल प्रतिपदि जन्ममंगलप्राप्ताय श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि० तज्यो खटखंड विभौ जिनचंद । विमोहितचित्तचितारि सुछंद ॥ धरे तप एकम शुद्ध विशाख । सुमन भये निजानंद चाख ॥३॥ ___ॐ ही वैशाखशुक्लप्रतिपदि निःक्रममहोत्सवमण्डिताय श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि०
सुदी तिय चैत सु चेतन शक्त। चहूं अरि छै करि तादिन व्यक्त ।। | भई समवस्त्रत भाखि सुधर्म । जजों पद ज्यों पद पाइय पम ॥४॥ ___ ॐ हीं चैत्रशुक्लतृतीयायां केवलज्ञानप्राप्ताय श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अर्घ नि० सुदी वयशाख सु एकम नाम । लियौ तिहिं द्यौस अभै शिवधाम
stutatuttitutetot