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सो लै चरन जजों भ्रम तम रबि, निज सुबोददेरी ॥ कु॥६॥ ____ॐ हीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय मोहान्धकारविनाशनाय दोपं निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥ देवदारु हरि अगर तगर करि चूर अगनि खेरी। अष्ट करम ततकाल जरै ज्यौं, धूम धनंजेरी ॥ कुंथ ॥७॥ ___ॐ ह्रीं श्रीकुंथुताथजिनेन्द्राय अष्टकर्मदहनाय धूमं निर्वपामीति स्वाहा ॥७॥ लोंग लायची पिस्ता केला, कमरख शुचि लेरी। मोच्छ महाफल चाखन कारन, जजों सुखरि ढेरी ॥८॥
ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथ जिनेन्द्राय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वयामीति स्वाहा ॥८॥ जल चंदन तंदुल प्रसून चरु, दोप धूप लेरी। फलजुत जजल करों मन सुख धरि हरो जगत फेरी ॥ कु.॥६॥ ॐ हीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय अनयंपदप्राप्तये अर्घ निर्वपामीति स्वाहा ॥६॥
पच कल्याणक मोतीदाम छन्द (वर्ण १२)
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