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मिथ्यातृपा निवारन कारन, धरों धार नेरी ॥ कुंथु० ॥१॥ ____ॐ ही श्रीकुथुनाथजिनेन्द्राय जन्मजरामृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥ बावन चंदन कदलीनंदन, घसिकर गुन टेरी। तपन मोह लाशनके कारन, धरों चरन नेरी ॥ कुथु०॥ २॥ ___ ॐ हीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय भवनापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीनि स्वाहा ॥२॥ मुक्ताफलसम उजल अच्छत, सहित मलय लेरी। पुंज धरों तुम चरनन आग, अखय सुपद देरी ॥ कुंथु० ॥३॥ __ॐ ह्रीं श्री कुंथुनाथजिनेन्द्राय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ॥ ३॥ कमल केतकी वेला दौना, सुमन सुमनसेरी। समर शूलनिरमूल हेतु प्रभु, भेंट करों तेरी ॥ कुथु०॥४॥
ॐ ही श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्य निर्वपामीति स्वाहा ॥५॥ कंचन दोपमई वर दीपक, ललित जोति धेरी।
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