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गजनागपुरै लियो जन्म जिन्हौं, रविके प्रानंदन श्रीमतिमाता। सहकुंथुसुकुंथुनिके प्रतिपालक, थापों तिन्हें जुतभक्ति विख्याता ॥१॥
ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथ जिनेन्द्र ! अत्र अवतर अवतर । संवौषट् ॥ ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ । ठः ठः॥ ॐ ह्रीं श्रीकुंथुनाथ जिनेन्द्र ! अब मम सन्निहितो भव भय । वपट् ॥
| ভক্ত।
चाल लावनी मरहठी को लाला मनसुखरायजी कृत । कुंथु सुन अरज दासकेरी । नाथ सुनि अरज दासकेरी॥ भवसिन्धु पस्यो हो नाथ निकारो बांह पकर मेरी॥ प्रभू सुन अरज दासकेरी। नाथ सुनि अरज दासकेरी ॥ जगजाल पस्यो हों बेग निकारो बांह पकर मेरी ॥ टेक ॥ सुरतरनीको उज्जलजल भरि, कनकभृग भेरी।
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