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भवभ्रमन हनंता, सौख्यअनंता, दातारं तारनवन्ता ॥१॥ ॐ हीं श्रीशान्तिनाथजिनेन्द्राय पूर्णा निर्वपामीति स्वाहा ॥१॥
छंद रूपक सवैया (मात्रा ३१) शांतिनाथजिनके पदपंकज, जो भवि.पूजै मनवचकाय । जनम जनमके पातक ताके, ततछिन तजिकै जाय पलाय ॥ मनवंछित सुख पावै सो नर, बाँचै भगतिभाव अति लाय । तात 'वृन्दावन' नित बंद, जातें शिवपुरराज कराय ॥ १ ॥
___ इत्याशीर्वादः पुष्पाञ्जलि क्षिपेत्। श्रीकुंथनाथ जिनपूजा।
छंद माधवी तथा किरीट (वर्ण २५)। अजअंक अजैपद राजै निशंक, हरै भवशंक निशंकित दाता। मतमत्त मतंगके माथे गॅथे, मतवाले तिन्हें हर्ने ज्यौं हरिहाता ।।
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