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कल्याणकल्पद्रुम । तिहपै जब संकट आनि पो,तह जाय सहाय भये रघुनाथा।। अब मोदुख देख द्रवो करुणानिधि,राखहु लाजगहोमम हाथा१९
मत्तगयन्द । । म्लेच्छनिको पति कोपित व्है करि, आनि जबै महिमंडल घेरी। * बॉध लियो नृपबालिसुखिल्यको, डारि दियो पगमें भरि बेरी॥ * श्रीरघुनाथ सनाथ भये, मय भजि उबार लियो तिहँ बेरी।*
मोदुख देख द्रवो अब नाथ, गहो मम हाथ करो मत देरी ॥२०॥ * शेठ महामति जेठ तिन्हें जब, दारिद हेठ कियो दुख देरी ।। * सो तुम नाम जप्यो अमिराम,जो कामदधाम महामुनि टेरी ॥ * दारिद दूर कियो तिनके घर, पूर दई तब ऋद्धि घनेरी।। क्यों न द्रवोलखि मोदुख दीरघ,श्रीपतिजी पतराखहु मेरी॥२१ श्री वसुदेवतिया सुखिया, त्रय युग्म जनी सुतको जिहें बेरी।। कंस विधंसनको तिनको, करि कोप शिलापर पॉय गहेरी ॥
शासन देव उवार लियौ, ततकाल तहॉ न लगी कल देरी। । क्यों न द्रवो लखि मो दुख दीरघ, श्रीपतिजी पत राखहु मेरी॥२२॥ * कृष्णकुमार प्रदुम्न उदार, महासुकुमार जये जिहिं बेरी ।।
बैर विचारि हो तब ही, सुर दीन्ह शिलातर डार बड़ेरी ॥ * लीन्हों उबार तिन्हें तिहिं बार, दयाधनधार न बार लगेरी ।
आज विलंबको कारन कौन है, श्रीपतिजी पत राखहु मेरी॥२३ चर्मर्शरीर श्रीपाल नरेसुरकों, जब कोढ़ महा गद घेरी। * मैना सती तिनकी वनिता, तुम भक्तिविर्षे अनुराग धरेरी ॥
ध्याय लगाय दियो चरनोदक, कंचन काय करी तिहिं बेरी॥ । होजन रंजन आरतमंजन,श्रीपतिजी पत राखहु मेरी ॥२४॥