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वृन्दावनविलास
ॐ जदपि तुमको रागादि नहीं, यह सत्य सर्वथा जाना है। चिनमूरत आप अनंत गुनी, नित शुद्धदशा शिवथाना है।
तद्दपि भक्तनकी भीति हरो, सुख देत तिन्हें जु सुहाना है। * यह शक्ति अचिंत तुम्हारीका, क्या पावै पार सयाना है।श्री०,
दुखखंडन श्रीसुखमंडनका, तुमरा प्रन परम प्रमाना है। वरदान दया जस कीरतका, तिहुंलोकधुजा फहराना है ॥ कमलाधरजी ! कमलाकरजी ! करिये कमला अमलाना है। * अब मेरि विथा अवलोक रमापति, रंच न बार लगाना है।।श्री
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हो दीनानाथ अनाथहितू, जनदीन अनाथ पुकारी है। * उदयागत कर्मविपाक हलाहल, मोह विथा विस्तारी है ॥ *ज्यों आप और भवि जीवनकी, ततकाल विथा निरचारी है। त्यों 'वृंदावन' यह अर्ज करै प्रभु, आज हमारी बारी हैं। श्री
इति जिनेंद्रस्ततिः समाता ॥१॥
(२)
अथ जिनवचनस्तुति।
(द पूर्वोक।) हो करुणासागर देव तुमी, निरोप तुमाग वाला है। तुमरे वाचामें है! खामी. मेरा मन साँचा गना है ।