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श्रीपरमात्मने नमः.
अथ
काशीवासी कविवर वृंदावनकृत
वृन्दावनविलास।
। (१)
अथ जिनेन्द्रस्तुतिर्लिख्यते। (शैरकी रीतिमें तथा और २ रागनियोंमें भी बनती है।) * श्रीपति जिनवर करुणायतनं, दुखहरन तुमारा बाना है।
मत मेरी बार अवार करो, मोहि देहु विमल कल्याना है ।।टेक॥
कालिक वस्तु प्रतच्छ लखो, तुमसों कछु बात न छाना है। मेरे उर आरत जो वरतै, निहचै सब सो तुम जाना है। अवलोकि विथा मत मौन गहो, नहिं मेरा कहीं ठिकाना है।। हो राजिवलोचन सोचविमोचन, मै तुमसों हित ठाना है।।श्री
* सब ग्रन्थनिमें निरग्रंथनिने, निरधार यही गणधार कही। । जिननायक ही सब लायक हैं, सुखदायक छायकज्ञानमही ॥