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________________ १४८ वृन्दावनविलास (१७) शीलमाहात्म्य । जिनराज देव कीजिये मुझ दीनपर करुना। ___ भविवृन्दको अब दीजिये, इस शीलका शरना ।।टेका शीलकी धारामें जो, स्नान करै है। ____ मलकमेको सो धोयके, शिवनार वरै है। व्रतराजसों वेताल, व्याल काल डरै है। _____उपसर्गवर्ग घोरकोट कष्ट टरै है ॥ १॥ तप दान ध्यान जाप जपन, जोग अचारा । इस शीलसे सब धर्मके, मुंहका है उजारा ॥ शिवपंथ ग्रंथ मंथके निम्रन्थ निकारा । विन शील कौन कर सकै संसारसे पारा ॥ २॥ इस शीलसे निर्वान नगरकी है अवादी । ___षठशलाका कौन, ये ही शील सवादी ।। सव पूज्यके पदवीमें है परधान ये गादी। ___ अठरासहस्र भेद भने वेद अवादी ॥३॥ इस शीलसे सीताको हुआ आगसे पानी । पुरद्वार खुला चलनिमें भर कृपसो पानी ॥ नृप ताप टरा शीलसे रानी दिया पानी । ___ गंगामें ग्राहसों वची इस शीलसे रानी ॥ ४ ॥ इस शीलहीसे सांप सुमनमाल हुआ है। दुख अंजनाका शीलसे उद्धार हुआ है।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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