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________________ वृन्दावनविलास उपेन्द्रवजा। . यथा नभोद्रव्यमनन्तमीरितं ___ तथैव बोधः समुदीरितोऽमलः । यतोऽखिलं ज्ञातमनेन तत्कथ मनन्तता तस्य तदुत्तरं मर ॥ ज्ञानापेक्षया तु ज्ञातस्याप्यनन्तत्वं न संभवति । यतस्त* स्यात्मपरिज्ञाने परिज्ञातत्वानुपपत्तेः । किन्तु द्रव्यगणितावयव ____७ आकाशद्रव्य अनन्त है। इसी प्रकारसे ज्ञान भी अनन्त है । और । ज्ञानमें सम्पूर्ण आकाश झलकता है। ऐसी अवस्थामें आकाश अनन्त फसे । हो सकता है ? (देखो पृष्ठ ११९ पृष्ठ २) इसका उत्तर इस प्रकार है: ज्ञानकी अपेक्षाज्ञात पदार्थ अनन्त नहीं हो सकता। यदि ज्ञात पदार्थ । ज्ञानसे अनन्त माना जाय, तो वह ज्ञानके विषयभूत नहीं हो सकता। । इसलिये ज्ञानकी अपेक्षा ज्ञात पदार्थ अनन्त नहीं है । किन्तु संख्याप्रमा णसे निखिल अनन्त पदार्थोको यथायोग्य अनन्तता सिद्धि हो सकती है। वह इस प्रकार है कि-सिद्धिराशि अनन्त है। उससे असंख्यातगुणी भूतकालकी समयराशि है । उससे अनन्तगुणी जीवराशि है । अथवा इस * प्रकार समझना चाहिये कि, सिद्धोंसे अनन्तगुणी संसारी जीवराशि है। १ उससे अनन्तगुणी निकालसमयवत्ता कालराशि है । उससे अनन्तगुणी सर्व आकाशप्रदेशोंकी राशि है । उससे अनन्तगुणी धर्माधर्म द्रव्यके मगुरुलघुगुणोंकी अविभागप्रतिच्छेदराशि है। उससे अनन्तगुणी सूक्ष्मनिगोदलब्ध्यपर्याप्तकके जघन्य श्रुतज्ञानकी भविभागप्रतिच्छेदराणि है। उससे अनन्तगुणी दर्शनमोहके क्षयरूप जघन्य क्षायिकतन्धिी अधिभागप्रतिच्छेदराशि है और उससे भी मनन्तगुणी उरष्ट दायिनिरूप केवलज्ञानको अविभागप्रतिच्छदराशि है । यह संख्यामा सवारी प्रमाण है । इससे आगे संख्याप्रमाण नहीं है । इस प्रकार सम्पूर्ण जाना। पदाथाकी अनन्तता यथायोग्य समझ लेनी चाहिये।
SR No.010716
Book TitleVrundavanvilas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNathuram Premi
PublisherJain Hiteshi Karyalaya
Publication Year
Total Pages181
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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