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मानव जीवन का ध्येय की बुद्धि-लीला | वह अपने बुद्धि कौशल से स्वर्ग बनाने चला था और कुछ बनाया भी था; परन्तु अब वन क्या गया है ? साक्षात् घोर नरक । क्या यह बुद्धि मनुष्य के लिए गर्व करने, की वस्तु है ! जिस बुद्धि के पीछे विवेक नहीं है धर्म की पिपासा नहीं है, वह बुद्धि मनुष्य को मनुष्य न रहने देकर राक्षस बना देती है। अपनी स्वार्थपूर्वि कर ली, जो मनचाहा काम बना लिया, क्या इस बुद्धि को ही मनुष्य-जीवन की सर्वश्रेष्ठता का गौरव दिया जाय ! खाना, पीना और ऐश आराम तो अपनीअपनी समझ के द्वारा पशुपक्षी भी कर लेते हैं। पारिवारिक व्यवस्था और कमानेखाने की बुद्धि उनमें भी बहुतो की बडी शानदार होती है । उदाहरण के लिए आप फाकलण्ड के द्वीप-समूह में पाई जाने वाली नमाजी चिडियाओं को ले सकते हैं । ये तीस से चालीस हजार तक की संख्या के विशाल भुण्डों मे रहती हैं। ये फौजी सिपाहियो की तरह कतार बॉध कर खडी होती हैं। और आश्चर्य की बात तो यह है कि बच्चों को अलग विभक्त कर के खडा करती हैं, नर पक्षियों को अलग तो मादा पक्षियों को अलग। इतना ही नहीं, यह और वर्गीकरण करती हैं कि साफ और तगडे पक्षियों को अलग तथा पर झाडने वाले, गन्दे
और कमजोर पक्षियों को अलग! कितने गजब की है सनिक पद्धति से वर्गीकरण करने की कल्पना शक्ति ! और ये मधुमक्खियाँ भी कितनी विलक्षण हैं ? मधुमक्खियों के छत्ते मे, विशेषज्ञों के मतानुसार, लगभग तीसहजार से साठ हजार तक मक्खियाँ होती हैं। उनमें बहुत अच्छा सुदृढ संगठन होता है । सब का कार्य उचित पद्धति से बटा हुआ होता है, फलतः हरएक मक्खी को मालूम रहता है कि उसे क्या काम करना है ? इसलिए वहाँ कभी कोई काम बाकी नही रह पाता, नित्य का काम नित्य समाप्त हो जाता है । छत्ते के अन्दर सब तरह का काम होता हैश्राहार का प्रबन्ध, छत्ता बनाने के लिए सामान का प्रबन्ध, गोदाम का प्रबन्ध, सफाई का प्रबन्ध, मकान का प्रवन्ध और चौकी पहरे का प्रबन्ध । कुछ को छत्ते के अन्दर गर्मी, हवा और सफाई का प्रबन्ध देखना होता