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श्रीसज्जनचित्तवल्लभ सटीक
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वृद्ध वय वृद्ध तप वृद्ध पुरुषहें तिनका विनय (श्रा दरमान) करना | और प्रतिदिन धर्मशास्त्रों का श्र भ्यासकरना | और चारित्र ( जपतपत्रत किया) की उज्ज्वलता अर्थात् शुद्धता से निर्दोष पालना (श्राचरण करना) और को मान माया लोभ मोह और काम इनको उपशम (शांति) करना । श्रीर संसार ( भव भ्रमण ) से डरना और मिथ्यात्व १ क्रोध २ मान ३ माया ४ लोभ ५ हास्य ६ रति ७ प्रति ८ शौक ९ भय १० ग्लानि ११ स्त्रीवेद १२ पुरुषवेद १३ नपुंसकवेद १४ यह १४ प्रकार अंतरंग परिग्रह और क्षेत्र १ वास्तु २ हिरण्य ३ सुवर्ण ४ धन ५. धान्य ६ दासी ७ दास ८ कूप्य ९ भांड १० ये १० वाह्य परिग्रहका त्याग करना । और उत्तम नमा १ मार्दव २ व ३ सत्य४ शौच्य ५ संयम ६ तप७ त्याग = श्राकिंचन & ब्रह्मचर्य १० ये दशप्रकार धर्मका जानना पालना ये साधुओं के लक्षण है ४ ॥ किन्दीक्षाग्रहणेन तेयदिधनाकां क्षाभवेचेतसि किङ्गार्हस्थ मनेनवेश धरणे. |सुन्दरम्मन्यसे । इव्योपार्ज