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६ श्रीसज्जनचित्तबल्लभ सटीक । चमा, स्पर्शन रसन घ्राण चक्षु श्रवण ये पाच विषः | याभिलाषिणी इन्द्रियां हैं इनको जीतना। सत्यवचन बोलना श्रेष्ठ शुद्ध आचरण पालना अर्थात् दोष न लगाना । और जो हृदय में रागादिकों कोही बढ़ाया अर्थात् धन धान्य सवारी चेले महल वस्त्र भूषणादि परिग्रहोंकी अंतरंग में चाह करी तो यह मुनि मुद्रा तो केवल भेष मात्रही हुई (इससे मुनिको अन्तरंग परिग्रह प्रथम छोड़ना योग्य हैं)। | देहेनिर्ममतागुरौबिनयतानित्यंश्रु ताभ्यासताचारित्रीज्वलतामहोपश मतासंसारनिर्वेगता । अन्तरवाहप रिग्रहत्यजनता धर्मज्ञतासाधुता सा घोसाधुजनस्यलक्षणमिदंसन्सारवि क्षेपणम् ॥ ४॥
॥ भाषाटीका ॥ हे साधु साधु जनोंके ये लक्षण संसार (भवभ्रमण ) के नाश करने वाले हैं। सो कौन ? तिनको कहतेहैं । शरीरसे ममत्व न करना।गुरुजनजो गुण