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श्रीसज्जनचित्तवलभ सटीक 1 ሂ
दांतों के बिना हाथी शोभाको नहीं पाता । श्रथवा सुगंधके बिना पुष्प शोभा को नहीं पाते । वा पनिक मरनेपर विधवा स्त्री शोभा की नहीं पाती । ऐमही चारित्र ( शुद्धाचरण ) बिना मुनि शोभाको नहीं पा ता चाहो कैसाही शास्त्रों का ज्ञाता ( जाननेवाला ) क्यों न होवे । कारण कि क्रियाविना ज्ञानकेवलमा भा
किंवस्त्रं त्यजनेनभोमुनिरसावेताव ताजायतेच्वेडेनच्युतपन्नगोगतविपः किंजातवानभूतले। मूलं किंतपसः क्ष मैद्रियजयः सत्यंसदाचारता रागादी श्वविभर्तिचेन्नसयति लिंगीभवेत् केच
लम् ॥ ३ ॥
|| भापाटीका ||
हे मुनि क्या इनवस्त्रों के त्यागने से मुनि हो जाना है ( अर्थात् नग्न होनेसेही महाव्रती न बनो) क्या कांचली के छोड़ने से पृथ्वीपर सर्प निर्विष होजाता है ? ( कदापि नहीं होता है ) तपका मूल क्या है ? ( अर्थात् तप कैसे निश्चल रहसकता है ? ) ऐसा प्रण होते उत्तर करते हैं कि तपके मूल ये हैं | उत्तम