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60 जैसे राजा व्यवहार के कारण ( जनता मे) दोष और गुणो को उत्पन्न करने वाला कहा गया है, वैसे ही जीव (भी) व्यवहार के कारण (पुद्गल) द्रव्य और ( उसके ) गुणो को उत्पन्न करने वाला कहा गया है ।
61. आत्मा जिस भाव को (अपने मे) उत्पन्न करता है, वह उस (भाव) कर्म का कर्त्ता होता है । ज्ञानी का ( यह भाव) ज्ञानमय ( होता है) और अज्ञानी का ( यह भाव ) अज्ञानमय होता है ।
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(चू कि) अज्ञानी के अज्ञानमय भाव (होता है) इसलिए ( वह) कर्मों को ग्रहण करता है, परन्तु ज्ञानी के ज्ञानमय (भाव) (होता है), इसलिए ( वह) कर्मों को ग्रहण नही करता है ।
63 चूँकि ज्ञानमय भाव से ज्ञानमय भाव ही उत्पन्न होता है, इसलिए ज्ञानी के सब भाव ही ज्ञानमय (होते हैं) ।
64 चूँकि अज्ञानमय भाव से अज्ञान (मय) भाव ही उत्पन्न होता है, इसलिए अज्ञानी के अज्ञानमय भाव (होते हैं) ।
65. जैसे कनकमय वस्तु से कुण्डल श्रादि वस्तुएं उत्पन्न होती हैं और लोहमय वस्तु से कडे आदि उत्पन्न होते हैं,
66 वैसे ही श्रज्ञानी के अनेक प्रकार के अज्ञानमय भाव ही उत्पन्न होते हैं तथा ज्ञानी के सभी भाव ज्ञानमय होते हैं ।
चयनिका
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