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उसका वास्तविक, मूलभूत कारण वस्तु आदि के प्रति प्रासक्ति ही है 1100, 135)-| जैसे कोई व्यक्ति शरीर पर चिकनाई लगा कर धूल से भरे स्थान मे काय-चेप्टा मे सलग्न हो जाए तो उम मनुष्य के शरीर से धूल का सयोग चिकनाई के अस्तित्व के कारण होगा; केवल काय-चेष्टा से नही। इसी प्रकार वस्तुग्रो और मनुष्यो/प्राणियो के जगत मे उनके प्रति रागादि (प्रासक्ति) के कारण कम-धूल का सयोग व्यक्ति के होता है, वस्तुप्रो और मनुष्यो। प्राणियो के कारण नही (127 से 130) । व्यक्ति की आसक्ति रहित प्रवृत्ति से उसके कोई कर्म-वन्धन (मानसिक तनाव) नहीं होगा-(131)1 जव मानसिक तनाव उत्पन्न होता है, तो सामा. न्यतया यह कहा जाता है कि व्यक्ति ऐसी परिस्थितियो से अपने को अलग करले। किन्तु यहाँ यह समझना चाहिए कि इसमे मानसिक तनाव दवे सकता है, दूर नहीं हो सकता है। निश्चय से तो मानसिक तनाव का कारण राग है, आसक्ति हैं, व्यक्ति और वस्तु नही । व्यवहार सें व्यक्ति/प्रारणी और वस्तु को मानसिक तनाव का कारण कह दिया जाता है । अत समयसार का शिक्षण है-कि निश्चयनय के द्वारा व्यवहारनय स्वीकार नही किया जा सकता है, यद्यपि जगत मे-मानसिक तनाव के लिए मनुष्यो। प्राणियो-और वस्तुओ को ही जिम्मेदार माना जाता है। किन्तु समयसार हमारा-ध्यान कर्म-बधन के वास्तविक कारण, आसक्ति की ओर आकर्षित करता है, क्योकि इसको दूर करने से हो शान्ति मिल सकती है। अतः निश्चयनय के आश्रित-ज्ञानी ही (आसक्ति के.मिटने से) सरम शान्ति प्राप्त करते हैं (136)-1 सच तो यह है क़ि-समयसार व्यक्तित्व को बदलने पर-जोर देता हैं। यही-मानसिक तनाव(कर्म-वन्धन)-की,समस्या का स्थायी हल है। मनुष्यो। प्राणियो-और-वस्तुओ मे बाह्य परिवर्तन-सामाजिक दृष्टिकोण से
समयंसार