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[ (ग) : (उवनोगा) ] [ (जोग) - (उवप्रोग)1 5 1 ] उप्पादगा (उपादग) 5/1 वि य (ग) = तथा तेसि (त) 6/2
हदि (च) व 3/1 प्रक पत्ता (कत्तु) 11 वि 53 जे (ज) 1,2 मचि पॉग्गलदव्यारण [(पॉग्गल)-(दब) 612 ]
परिणामा (परिणाम) 1/2 होति (हो) व 3/2 अक पारगमायरणा [ (गारण)-(प्रावरण) 1/2 ] (प्र)= नही फरेदि (कर) व 3/1 गक तारिण (त) 212 प्रादा (पाद) 1/1 जो (ज) 1/। मवि जाणदि (जाण) व 3/1 मक सो (त)
11 मवि हदि (हव) व 31 अक गाणी (गाणि) 1/1 वि 54 ज (ज) 211 मवि भाव (भाव) 2/1 सुहमसुह [ (सुह)+
(प्रमुह) ] सुह (सुह) 2/1 वि अमुह (असुह) 2/1 वि फरेदि (कर) व 3/1 मक प्रादा (पाद)1/I स (त) 1/1 सवि तस्स (त) 611 वलु (अ)=निम्मदेह फत्ता (कत्त) 1/1 वि त (त) 1/1 मवि होदि (हो) व 3/1 अक फम्म (कम्म) 1/1 सो (त) 1/1
मयि दु (प्र)=ही वेदगो (वेदग) 1/1 वि अप्पा (अप्प) 1/1 55 जो (ज) 1/1 मवि जम्हि (ज) 7/1 मवि गुणों (गुण) 1/1
दवे (दव्व)7/1 मो (त) 1/1 सवि अण्णम्हि (अण्ण) 711 मवि दु (प्र)-निश्चय ही रण (म)=नही सकमदि (सकम) व
किसी पाय का कारण व्यक्त करने वाली स्वीलिंग-भिन संशा को तृतीया या
पचमी में रखा जाता है। 2 कमी कभी द्वितीया विभक्ति के स्थान मे मप्तमी विभक्ति का प्रयोग पाया जाता
है । (हेम-प्राकृत - व्याकरण, 3-135) गत्यार्थक क्रिया के योग मे द्वितीया
विभक्ति होती है। 3 'गुणे' के स्थान पर 'गुणो' पाठ ठीक प्रतीत होता है (समयसार कुन्दकुन्द
भारती के मन्तगत, स पग्नालाल साहित्याचाय) ।
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