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'८४] वैसा पतित नहीं था जैसा साधारण लोग समझते हैं। वह बड़ा नीतिज्ञ और भक्त था । बाल्मीकि ने भी उसे महात्मा माना है । उसके जीवन में मर्यादा थी, इसी कारण सीता का शील सुरक्षित रह सका । फिर भी उसके प्रति आज भी घृणा प्रकट की जाती है । किन्तु आज समाज में रावण से बढ़ कर न जाने कितने महारावण मौजूद हैं । वे अपने हृदय को टटोल कर अाज अपनी शुद्धि का संकल्प कर लें तो उनके लिए विजयादशमी वरदान सिद्ध होगी। जैसे राम, महावीरस्वामी तथा भूधर जी जैसे महापुरुषों ने अन्तः करण के विकारों पर विजय प्राप्त की, वैसे ही हमें भी अपने विकारों को जीतना है । यही विजया दशमी का दिव्य संदेश है। जो विकार पर विजयी बनेगें, वे अपना इहलोक और परलोक सुधार सकेंगे। उन्हीं का कल्याण होगा।