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इसी के कारण बादल यात्रा कर चले जाते हैं । इस विचार से उसको क्रोध ग्राना स्वाभाविक था ।
मस्तक पर प्रहार होते ही रुधिर की धारा प्रवाहित होने लगी । बाबा जी ने गीले वस्त्र की पट्टी बांधली । जब वे गांव में आए ती शोर गुल मच गया । प्रहार करने वाला पकड़ा गया और कंडाह के नीचे दबा दिया गया। यह समाचार भूधर जी महाराज तक पहुँचा ।
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मूनि क्षण भर के लिए सोच-विचार में पड़ गए । वे सोचने लगेमेरे कारण एक अज्ञान किसान के प्राण चले जाएंगे तो मैं इसे कैसे सहन कर सकूंगा ! इस घटना से तो जैन शासन की भी बदनामी होगी !
उसी समय उन्होंने अपने कर्तव्य का निर्णय कर लिया। मुनिजी ने घोषणा कर दी - " जब तक उस किसान को नहीं छोड़ दिया जाएगा, तब तक मैं अन्न जल ग्रहण नहीं करूंगा ।
मुनिराज की भीष्म प्रतिज्ञा सुन कर ग्राम के लोग सन्न रह गए। सर्वत्र उनकी दयालुता की भूरि-भूरि सराहना होने लगी । उसी समय वह किसान छोड़ दिया गया । किसान के मन में भारी उथल पुथल हुई । वह सोचने लगा मैं जिसकी जान लेने पर उतारू हुआ, उसी ने मेरी जान बचाई ! ऐसा महात्मा धन्य है । मैं कितना प्रथम हैं कि एक निरपराध साधु को व्यथा पहुँचाने से न हिचका !
श्री राम और महावीर स्वामी की कथानों में भी करुणा का सजवी श्रादर्श उपलब्ध होता है, मगर उन्हें हुए बहुत काल हो चुका है । मगर भूघर जी महाराज को हुए तो लम्बा समय नहीं हुआ । वे आधुनिक काल के ही महापुरुषों में गिने जा सकते हैं । उनका ज्वलन्त जीवन हमारे समक्ष एक महान् श्रादर्श है ।
राम ने रावण की दानवी लीला समाप्त की । हमारी दृष्टि में ग्रात्मा का शुद्ध स्वरूप ही राम का प्रतीक है । उहोंने काम रूपी दशानन पर विजय प्राप्त की । रावण अपने समय का महान् शक्तिशाली राजा था । उसका जीवन