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'भविष्य में भी उदय को प्राप्त होगा । उसने पूर्वपुण्य के उदय से वैभव, धन आदि प्राप्त किया और मति भी पाई और उसका सदुपयोग किया तो फिर . ऊंचा उठेगा। हम भरत को उदितोदित कह सकते हैं तो ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को उदित ग्रस्त |
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यदि दीपक प्रकाश में रहा है तो मनुष्य उसके प्रकाश में काम कर सकता है । उसके बुझ जाने पर काम नहीं किया जा सकता। एक प्रकाशित दीपक हजारों दीपकों को प्रकाशित कर सकेगा । छोटा-सा दोपक लालटेनों ग्रादि को भी प्रकाश दे सकता है । किन्तु बुझने पर वह किसी काम का नहीं । जीवन की भी यही स्थिति है। जिसने अपने जीवन में विवेक प्राप्त किया है, वह उदय में उदय करेगा - अपने को ऊंचा उठाएगा और दूसरों को भी ऊंचा उठाने का प्रयत्न करेगा । जो मनुष्य उदितोदित है वह अपने धन से दीन, हीन, असहाय और विपन्न जनों के दुःख को दूर करेगा । ऐसा करके वह पुनः उदित बनेगा श्रीर दूसरों के उदय में भी सहायक बनेगा । यदि उसे सुबुद्धि प्राप्त है तो दूसरों को सत्परामर्श देकर कुपथ से हटाएगा, सुपथ पर लाने का प्रयत्न करेगा, ज्ञान का प्रकाश देगा | इस प्रकार स्वयं प्रकाशित होने के साथ-साथ दूसरों को भी प्रकाशित करेगा । किसी कवि ने ठीक कहा है
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कमनीय कुन्दन की कान्ति का कलेवर है, कौन काम का जो माना आप रुस्तम से कम नहीं जो दीनों को विपत्ति से उबारा नहीं आपने । कंकरी सी सम्पदा करोड़ों की न कौड़ी की,
जो दिया दीन-दुखी को सहारा नहीं आपने । व्यर्थ हुए पंडित प्रवीण प्रतिभा के पूरे,
देश की दशा को जो सुधारा नहीं आपने ||
काम मारा नहीं श्रापने । किन्तु क्या,
अगर कामवासना पर विजय प्राप्त न कर सके तो कुन्दन की सी कान्ति से कलित आपका यह कलेवर किस काम का ? रुरतम - सा बल पाकर भी यदि गरीबों को विपदा से नहीं बचाया तो श्रापका बल किस मर्ज की दवा है ? पुण्य के योग से जो शक्ति प्राप्त हुई है, उसे पुण्य कार्य में जो नहीं लगाता