________________
५६
विशेष विचारणा यहां नहीं करनी है । आज तो पुण्य और पाप के विषय में ही कतिपय विचार प्रस्तुत किये जाएंगे।
___ किसी जीव को पूर्वकृत पुण्य कर्म का उदय तो हो किन्तु उस पुण्यकर्म के फलस्वरूप प्राप्त सामग्री का उपयोग वह पापकृत्यों में कर रहा हो तो वह कर्म उसे ऊपर नहीं उठा कर नीचे गिरा देगा । पुण्य प्रकृति का भोग करते · समय मनुष्य अगर अपनी वर्तमान प्रवृत्ति को न संभाले तो वह गिर जाएगा।
उच्च, पद, धन, सुन्दर शरीर, अनुकूल परिवार, विनीत पुत्र, वैभव, बुद्धि, यश-कीति, ये सब पुण्य के फल हैं, लेकिन इन्हें पाकर किसी ने यदि इनका ठीक उपयोग न किया, बल पाकर दूसरों को पीड़ा पहुँचाई, धन का दुरुपयोग किया, बुद्धि से कुकल्पनाएं करके स्व-पर को अधःपतन की ओर प्रेरित किया, इसी प्रकार प्राप्त किसी भी शक्ति का दुरुपयोग किया तो उसका परिणाम सुन्दर नहीं होगा। संसार में कितने ही मिथ्या मत-पंथ प्रचलित हैं। उन्हें चलाने वाले भी बुद्धिशून्य नहीं, बुद्धिमान लोग हो थे। लेकिन उन्होंने पुण्ययोग से प्राप्त बुद्धि का दुरुपयोग किया। कितने राजा-महाराजा धन-वैभव को प्राप्त करके उससे पापकर्म करते हैं । शारीरिक शक्ति प्राप्त करके अन्य प्राणियों का संहार करते । हैं । कंस को जो शक्ति प्राप्त थी उसका उसने क्या उपयोग किया ? मगर इस प्रकार
पुण्य से प्राप्त साधनों का जो दुरुपयोग करते हैं वे अपनी आत्मा को नीचे गिराते हैं। . इस प्रकार भावना यदि शुभ न हो-भावना में पुण्य प्रकृति का उदय न हो तो
पुण्य जीव को नीचे भी गिरा देता है । प्राप्त शक्ति तथा वैभव के सदुपयोग का विचार उसे नहीं मिला। परिग्रह उसके जीवन में ममता तथा आसक्ति का कारण वना, इससे उसका पतन हुआ। जगत् में चार प्रकार के मनुष्य होते हैं
(१) उदितोदित (२) उदितास्त. (३) अस्तोदित और (४) अस्तास्त । जो मनुष्य ___ उदय में उदय करने वाला है, वह उदितोदित कहलाता है। वर्तमान जीवन . + में जो स्वस्थ तन, धन, भूमि, आदि सामग्री मिली है, वह पुण्य के उदय के ___ कारण मिली है । उस सामग्री का सदुपयोग करके जो उसके निमित्त से वर्तमान . . में भी पुण्य का उपार्जन करता है, ऐसा पुण्य से पुण्य का उपार्जन करने वाला "पुरुष उदितोदित कहा गया है। वह वर्तमान में उदय को प्राप्त है और