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स्व-पर कल्याण में व्यय नहीं करता, उसका उस शक्ति को पाना व्यर्थ हैं। व्यर्थ ही नहीं वरन् अकल्याण का कारण है । ऐसे अभागे मनुष्य के लिए यही
कहा जा सकता है कि उसने हीरे की कणी पाकर उसे आत्मघात का कारण ... बना लिया ! जो पुण्य, पाप का कारण बनता है वह पापानुबंधी पुण्य कहलाता है जो बाह्य में पुण्य रूप हो कर भी वस्तुतः पाप की ही श्रेणी में गिना जाता है। . . . . . . . . किसी महापंडित का मस्तिष्क यदि समाज और देश की उन्नति में नहीं लगता तो उसका पाण्डित्य किस कामना का ? आज के वैज्ञानिक भौतिक
पदार्थों की बहुत-सी सूक्ष्म शक्तियों को समझते हैं। वे भौतिक पदार्थों के महा..पण्डित कहे जा सकते हैं । उनके वैज्ञानिक कौशल ने संसार को कुछ का कुछ बना दिया है । आज वे सुदूरगामी राकेट छोड़ कर चन्द्रमा और मंगल आदि का पता लगाने के लिए प्रयत्नशील हैं । सैकड़ों चमत्कार उन्होंने इस धरती पर दिखलाए हैं किन्तु उनकी इस सूक्ष्म प्रज्ञा का नतीजा बया है ? उस प्रज्ञा के परिणाम स्वरूप जिन भयानक अणुवमों और उद्जन बमों का निर्माण हुआ, उससे जगत् में क्या शान्ति हुई है ? बुद्धिमान् वैज्ञानिक राजनीतिज्ञों के हाथ की कठपुतली बने हुए हैं । वे अपनी बुद्धि का दुरुपयोग करके संहारक साधनों का निर्माण करके दुनियां को भीषण संकट में डाल रहे हैं। ऐसे पण्डितों की पण्डिताई किस काम की है ?
जो तन से दूसरों की सेवा करेगा, अपनी विद्या का उपयोग दूसरों को सम्यग्ज्ञान देने में करेगा, शक्ति के द्वारा दीनों की सहायता करेगा, वह मनुष्य उदित्तोदित माना जाएगा । वह दीपक से दीपक जगाने वाला है, पुण्य के द्वारा पुण्य का उपार्जन करने वाला है । उसके पुण्य को पुण्यानुबंधी पुण्य समझना
चाहिए ।...... . . . .. महावीर जैसे महापुरुष आज भी हमारे हृदय में विराजमान हैं, .. उनका नाम हमारे हृदय में पवित्र प्रेरणा उत्पन्न करता है और उनका स्मरण हृदम में श्रद्धा-भक्ति का स्रोत प्रवाहित कर देता है, क्योंकि उन्होंने स्वयं आदर्श जीवन व्यतीत कर जनसमाज के उत्थान में महान् योग प्रदान किया ।