________________
...... .[ ४२६ . .
चल चुका था । बलभद्र जिन मार्ग के श्रद्धालु श्रावक थे। अतएव उन्होंने इन । साधुओं को सन्मार्ग पर लाने का निश्चय किया। अपने सेवकों द्वारा साधुओं
को बुलवाया। साधुओं के आने पर राजा ने प्राज्ञादी-इन सबको मदोन्मत्त . हाथियों के पैरों से कुचलवा दिया जाय !
देखने-सुनने वाले दंग रह गए । राजसभा में सन्नाटा छा गया। साधुनों E: के पैर तले की धरती खिसक गई। लोगों ने राजा के भीतरी प्राशय को समझा - नहीं था, अतएव उनके हृदय में उथल पुथल मच गई। मगर राजा के आदेश
के सामने कोई न कर सका।:..
- मदमस्त हाथी लाये गये और साधु एक कतार में खड़े कर दिये गये । ... .: साधुओं के सिर पर मौत मंडराने लगी अपना अन्तिम समय समझ कर उनमें
से एक साधु ने बचाव करने का विचार किया। उसने सोचा-जब मरना है तो डरना क्या ! आखिर राजा से पूछ तो लेना चाहिए कि किस अपराध में हमें यह भयंकर मृत्युदण्ड दिया जा रहा है ! राजा ऋद्ध भी हो गया तो प्राणनाश से .... अधिक क्या करेगा ? सो वह तो कर ही रहा है । संभव है हमें अपनी सफाई पेश करने का अवसर मिल जाय ।
- इस प्रकार विचार कर साधु ने कहा-राजन् ! श्राप श्रावक होकर भी क्यों ।
हम निरपराध साधुप्रो के प्राण ले रहे हैं ? ... .
.. राजा को अपनी बात समझाने का अवसर मिल गया। उसने उत्तर दिया-कौन जाने आप लोग साधु हैं अथवा साधु के वेष में चोर है ? आप अपने को साधु कहते हैं मगर आपके कथन पर कैसे विश्वास किया जा सकता है ?
जब आप लोगों को आपस में ही एक दूसरे पर विश्वास नहीं, आपमें से कोई ..किसी को निश्चित रूप से साधु नहीं मानता, फिर हम कैसे प्रापको साधु मानः ..
लें ? अगर आप एक दूसरे को साधु समझते होते ती परस्पर वन्दना व्यवहार करते ! ............ . .. .. .......