________________
४२८ ]
__स्थूलभद्र का अन्तिम समय सन्निकट पाया। उनके शरीर में प्रवल वेदना उत्पन्न हुई और उनकी जीवन लीला समाप्त हो गई। वे अपने शिष्यों को जो वाचनां दे रहे थे, वह पूर्ण नहीं हो पाई थी, अतएव धर्मस्नेह के कारण स्वर्ग" से पाकर वे अपने मृतक शरीर में पुनः अधिष्ठित हो गए। प्रातःकाल शिप्यों को जगाकर वाचना पूरी की। अन्त में उन्होंने इस रहस्य को प्रकट कर दिया। बतलाया कि मैं शरीर त्याग कर स्वर्ग चला गया था और पुनः इस शरीर में . अधिष्ठित हो गया हूँ।
इस प्रकार गुरु के रूप में देवता ने काम किया। शिष्यों ने उनके शरीर को त्याग दिया। मगर इस घटना ने विपम रूप धारण कर लिया। कतिपय साधुओं के मस्तिष्क में एक व्यापक सन्देह उत्पन्न हो गया। उन्होंने सोचा हमने असंयमी देव को साधु समझ कर वन्दना की। ऐसी स्थिति में क्या पता चल सकता है कि कौन वास्तव में साधु है और कौन साधु नहीं है ? बेहतर है कि कोई किसी को वन्दना ही न करे ।
इस प्रकार विचार कर उन्होंने आपस में वन्दनव्यवहार बन्द कर दिया। स्थविरों ने उन्हें समझाया-वह वास्तव में साधु नहीं था, देव था, यह आपने कैसे जाना ? देव के कहने से ही न ! अगर आप देव के कथन पर विश्वास कर सकते हैं तो जो साधु अपने को साधु कहते हैं, उनके कथन पर विश्वास क्यों . नहीं करते ? देव की अपेक्षा साधु का कथन अधिक प्रामाणिक होता है। फिर भी आप देव के कहने को सत्य समझे और साधु के कथन को असत्य समझलें; यह न्यायसंगत नहीं है।
इस प्रकार बहुत कुछ समझाने-बुझाने पर भी वे संदेहग्रस्त साधु समझ न सके । तब उन्हें संघ से पृथक् कर दिया गया।
पृथक हुए साधुओं की मंडली घूमती-घूमती राजगृह नगर पहूँची। वहाँ के राजा उस समय बलभद्र थे। उन्हें इन साधुओं की भ्रान्त धारणा का पत.