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राजा के इतना कहते ही सायों की बुद्धि ठिकाने आ गये। उहीने
अपनी भूल के लिए पश्चाताप किया ।
जव शासन में किसी का
न ही घर शासन का अपवाद होता हो तो श्रावक ढाल बन जाता है श्री परिस्थिति की सुवारने का काम करता है । भीतर में बहाड़े तो भी कोई बुरा नहीं मानता।
साधुगरण राजा बलभद्र ने क्षमायाचना करके गुणों में जा पहने।
वीर निर्वाण २१५ में स्थूलभद्र स्वर्गधाम सिवारे | दही महामुनि स्थूलभद्र की ताराधना का सुफल हम ग्राज भोग रहे हैं। हमें इस मंगल जीवन के चिन्तन का अवसर मिला, यह हमारे कल्याण का कारण बनेगा |
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बन्धुप्रो ! श्रापके समक्ष जो प्रादेश उपस्थित किए गए हैं, ये आपके पथ प्रर्दशक बन सकते हैं। आप इनसे प्रेरणा लेते रहेंगे तो आपका जीवन कल्याणमय न जाएगा। स्वाध्याय के सम्बन्ध में पर्याप्त प्रकाश डाला गया है । याशा करता हूँ कियाप स्वाध्याय की धारा को टूटने नहीं देंगे | उपय रूपी विद्यालय में अध्यापक की छड़ी नहीं घूमेगी, फिर भी आप लोग स्वयंचालित ग्रस्त्र के समान चलते रहिए । इन शब्दों के साथ में ग्राह्नान करता है " कि भगवान् महावीर की मंगलमयी वाणी को हृदय में धारण कर स्वपर एवं लौकिक-लोकोत्तर कल्याण के भागी बनें।