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४२४ ] तुम विचरण शील रहोगे तो तुम्हारी कोई हानि नहीं होगी और दूसरों को लाभ होगा। कहा है
बहता पानी निर्मला, पड़ा गंदीला होय ।
साधु तो रमता भला, दाग न लागे कोय । साधु रमता-रमता कहीं भी चला जाता है । एक ग्राम या नगर में अधिक से अधिक कितने दिनों तक उसे ठहरना चाहिए, इसकी मर्यादा वाँध दी गई है।
साधुओं के समान साध्वियों के लिए उग्र विहार का रूप नहीं है। उनके लिए .. एक जगह रहने का काल द्विगुणित माना गया है । कभी लौंद का महीना आ. :: ... गया या जीव-जन्तुओं का संचरण बन्द न हुआ या कोई अन्य विशेष कारण .. उपस्थित हो गया तो छह मास तक स्थिर निवासकाल बढ़ाया जा सकता हैं। ... किन्तु कारण के विना उसे नहीं बढ़ाया जा सकता । साधुओं की इस विहारचर्या ..का दूसरा उद्देश्य भगवान् वीतराग की ज्ञानगंगा को दूर-दूर और सर्वत्र प्रवाहित - ' करना है । प्राधियों, व्याधियों और उपाधियों से पीड़ित और अनेकविध सांसारिक,
सन्तापों से सन्तप्त प्राणियों को शान्ति प्रदान करना है। . ... ... ... . .. चार मास के वर्षा काल का साधना के चार मार्गों के साथ बड़ा ही . सुन्दर मेल बैठता है । इस काल में ज्ञान के आदान-प्रदान का कार्य चलता रहता है।
... हम आषाढ़ शुक्ला नवमी को सैलाना में पाए और कात्तिकी पूर्णिमा . . तक रहे । यहाँ के नागरिकों की श्रद्धा, भक्ति, सुजनता तथा शील-व्यवहार का -
हमारे हृदय पर गहरा प्रभाव पड़ा है। चातुर्मास के समय कुछ साधु-साध्वियों ... को शारीरिक वेदना का अनुभव करना पड़ा, किन्तु अब वे स्वस्थ हो गए हैं।
हमने अपनी चातुर्मासिक साधना का समय पूर्ण कर लिया है। लोगों की । . सरलता, सुजनता एवं श्रद्धा से हमें बड़ा प्रमोद मिला है । सैलाना-वासियों का ... धार्मिक योगदान बड़ा उत्तम रहा। यहाँ संघनायक न होते हुए भी आदर-सम्मान की प्रवृत्ति, साधुओं के प्रति श्रद्धा भक्ति ऐसी थी. जैसे सब एक शासन सूत्र में ..