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प्रयास से प्रामाणिकता की सुदृढ़ भूमिका तैयार हो सकती है । इससे भ्रष्टाचार, घूसखोरी, मिलावट, काला बाजार प्रादि बुराइयाँ, जो देश के स्वाथ्य के लिए क्षय के कीटाणुओं के समान हैं, नष्ट की जा सकती हैं। एक कवि ने कहा है
वरं विभववन्ध्यतां सुजनभावभाजां नृणाम्, असाधु चरिताजिता न पुनरूजिता सम्पदः । कृशत्वमपि शोभते सहजमायतौ सुन्दरम्,
- विपाकविरसा न तु श्वयथुसम्भवा स्थूलता ।। ...धन की गरीबी बुरी नहीं है । दुष्कृत्यों के द्वारा उपार्जित की गई लक्ष्मी . अच्छी नहीं है। परिणाम में सुन्दर स्वाभाविक कृशता में कोई बुराई नहीं है, - मगर सूजन के कारण उत्पन्न होने वाली मोटाई श्रेयस्कर नहीं है । मधुमक्खियाँ - . काट लें और उससे शरीर फूल जाय तो क्या वह खुशी की चीज होगी ? नहीं, : -
शरीर में सूजन आ जाने से चिन्ता होगी और अस्पताल भागना पड़ेगा। यह ... रोग है। इसी प्रकार अनीति से प्राप्त धन का मोटापन भी रोग है ! कृशता .
शोभा देती है जो सहज है, परन्तु अनुचितं. मोटापन बीमारी की निशानी है।
व्यापारी आदि सभी वर्ग अगर इस नीति को व्यवहार में लावे तो इस संकट के समय में स्वयं को तथा देश को भी निर्भय बना सकेगें। पाप घटने से .. दुःख आप ही श्राप घट जाएंगे। दुःख को घटाने के लिए बाह्य साधन भी.. .: किया जाय किन्तु अन्तरंग को भी सुधारा जाय; इससे दुःख का शीघ्र निकन्दन :
होगा । यह अनुभूत वाणी है, अटकलपञ्चू की बात नहीं है । .:. : भारत की आत्मा सांस्कृतिक रूप में उज्ज्वल रही हो तो उसे पदाक्रान्त
करने का सामय किसी में नहीं। देश की पुण्यप्रकृति बढ़ेगी तो पाप घटेगा और . .. पाप घटने से संताप भी अवश्य घटेगा। सिर्फ बाहर के उपायों से सन्ताप नहीं ...
घटता । छल-बल वाले को जल्दी सफलता मिलती दीख पड़ती है, मगर वह बोस और स्थायी नहीं होती। स्थायी विजय और सच्ची शान्ति तो सुजन के ...