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३७४ ] ...: अनेकान्त सिद्धान्त का अभिमत यह है कि उपादान और निमित्त दोनों कारणों के सुमेल से कार्य की निष्पत्ति होती है । निमत्त. कारण मिलने पर भी उपादान की योग्यता के अभाव में कार्य नहीं होता और उपादान की विद्यमानता में भी यदि निमित्त कारण न हो तो भी कार्य नहीं होता। ................. - शास्त्र की बात जो चल रही है, उसके सुनने में मैं निर्मित हूँ और मेरे सुनाने में आप निमित्त हैं। घड़ी भर पहले भले कुछ दूसरी लहरें आपके चित्त में उठ रही हों किन्तु अागमवाणी का निमित्त पाकर कुछ प्रशस्त भावना आपके मन में आई होगी। मगर मूल कारण उपादान है जो छिपा हुआ है ।'
___ महामुनि भद्रबाहु के साथ स्थूलभद्र की ज्ञानाराधना की चर्चा पिछले दिनों चल रही थी । ज्ञानामृत को वितरण करते-करते उन्होंने देहोत्सर्ग किया। श्रुत के बीज आज़ जो उपलब्ध हैं, उनकी ज्ञानाराधना का मधुर फल है । समा
धिमरण-पूर्वक महाप्नुनि भद्रबाहु ने अपनी जीवन लीला समाप्त की। उन्होंने .. श्रुत केवली का पद प्राप्त किया था । ७६ वर्ष की समग्र आयु पाई। स्थूलभद्र ... उनसे अधिक दीर्घजीवी हुए । उनकी आयु ६६ वर्ष की थी। भद्रबाहु के पश्चात्
४५ वर्ष तक स्थूलभद्र ने संघ का नेतृत्व किया। अपनी विमल साधना से साबुसाध्वी वर्ग को संयम के पथ पर चलाते हुए कुशलता पूर्वक उन्होंने शासन का.
संचालन किया । जिनशासन में वह काल परम्परा भेदों या गच्छ भेदों का नहीं ... था।..
.. . दस पूर्वो के ज्ञाता को वादी और चौदह पूर्वो के ज्ञाता को श्रुत केवली ... कहा जाता है । श्रुतकेवली मद्रबाहु के संबंध में काफी अन्वेषण किया जा चुका .: है । इनके अतिरिक्त एक भद्रवाहु दूसरे भी हुए हैं। वे निमित्त वेत्ता भद्रबाहु ..
माने गये हैं श्रुतकेवली के ज्ञान में निमित्तज्ञान भी अन्तर्गत रहता है, परन्तु . श्रतकेवली उसे प्रकट नहीं करते। . . . .. ... ... .. ... ............
.... भद्रबाहु के साथ चंद्रगुप्त का संबंध बतलाया जाता है। चंद्रगुप्त भी एक महापुरुष हो गए हैं। .................. ... .