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. ..श्रमणोपासक अानन्द प्रभु महावीर के समक्ष कहता है- में अपने जीवन ... में विशुद्ध सम्यग्दर्शन प्राप्त करना चाहता है। दर्शन में अशुद्धि होने से बुद्धि की : वास्तविक निर्णायिका गक्ति समाप्त हो जाएगी। वह वन्दनीय और अवन्दनीयः : को क्या समझ सकेंगा ? प्रान्नद चाहता है कि मेरी बुद्धि में निर्णायक शक्ति और स्वरूप में निश्चलता ना जाएः। वह बुद्धि की इस शक्ति पर पर्दा नहीं डालना चाहता :
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जिनका व्यवहार शुद्ध न हो, जिनका आचार शुद्ध न हो, उनके साथ ... लेन-देन करना व्रती श्रावक के लिए उचित नहीं है । व्यक्ति की योग्यता, शील- . स्वभाव, किन उपायों से वह द्रव्य उपार्जन करता है, आदि की जाँच करके
लेन-देन किया जाना चाहिए जो व्यवहार में ऐसा ध्यान रक्खेगा, वह... . आध्यात्मिक क्षेत्र में क्यों नहीं सजग रहेगा?, .. ..
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पारमात्मिक पारांधना शान्ति प्राप्त करने के लिए की जाती है मन की .. आकुलता यदि बनी रही तो शान्ति से प्राप्त हो सकती है ? गलत तरीके से पाया धन मन को अशान्त बना देगा, अतएवं साधक अर्थार्जन के लिए किसी।
प्रकार का अनैतिक कार्य न करे । न्याय से ही धनोपार्जन करना श्रावक का ... मूलभूत कर्तव्य है। . .
.... साधक के लिए विचारों की शुद्धि और अपरिग्रह अत्यन्त आवश्यक है। विचार शुद्धि से वह देव, गुरु, धर्म संबंधी विवेक प्राप्त करेगा और उनके विषय
में निश्चल स्थिति प्राप्त कर लेगा। अपरिग्रह की भावना से हाथ लम्बे नही . 'करेगा । जिसके व्यवहार में ये दोनों तत्त्व नहीं होंगे, जिसका व्यवहार बेदरे तौर पर चलेगा, वह शान्ति नहीं पाएगा।
....... :: :: गज्ञान अावश्यक होता है। अन्य ज्ञान की कमी हो तो काम चल सकता है, परन्तु जीवन बनाने का ज्ञान न हो तो जीवन सफल नहीं हो सकता । ज्ञेय विषय अनन्त हैं और एक-एक पदार्थ में अनन्त-अन्त गुण और पर्याय हैं । ज्ञान का पर्दा पूरी तरह हटे बिना उन सब को जानना संभव