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ब्रह्मचर्य की विशुद्धि
आचारांग सूत्र में जीवों की रक्षा का विचार करते हुए निरूपरा किया गया है कि किन-किन प्रयोजनों एवं कारणों से प्रेरित हो कर अज्ञानी जन हिंसा करते हैं और कैसे उससे बचना चाहिए ?, हिंसा से बचने और अहिंसा का पालन करने के लिए सर्व प्रथम जीव-अजीव को पहचानने की आव. श्यकता है । जीव के स्वरूप को जाने जिना हिंसा से बचना संभव नहीं है। शास्त्र में कहा है कि
जो जीवे वि न यारोई अजीवे वि न याणाइ।
जीवा जीवे अयारणंतो कह सो नाहीइ......।
बहुत-से ले.ग जीव को अजीव मानकर निःसंकोच हिंसा में प्रवृत्त होते देखे जाते हैं। चलते-फिरते और व्यक्त चेतना वाले जीवों को तो साधारण लौकिक जन भी जीव समझते हैं किन्तु ऐसे भी जीव होते हैं जिनकी चेतना व्यक्त नहीं होती या जिनकी चेतना के कार्य हमारे प्रत्यक्ष नहीं होते । वे स्थावर जीव कहलाते हैं । यद्यपि ज्ञानी के लिए उनकी चेतना भी व्यक्त हैं, पर चमड़े की आंखों वाले के लिए वह व्यक्त नहीं होती। फिर भी यदि गहराई से विचार किया जाय तो उनमें रही हुई चेतना को समझ लेना कठिन नहीं है । अनुमान और आगम प्रमाणों से तो उसे भी समझने में कोई कठिनाई नहीं होगी।
__ सब का स्वानुभव इस सत्य का साक्षी है कि जगत् के छोटे-बड़े सभी जीवों को आयु प्रिय है, जीवन प्रिय है, प्राण प्रिय हैं। मृत्यु सभी को अप्रिय ... है । सभी जीव दुःख से उद्विग्न हेते हैं और सुख से प्रसन्न हेते हैं।
एक राजनीतिज्ञ और विधान शास्त्री धन, भूमि और वस्त्र आदि