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[२७ . वातावरण में भी अपने को विशुद्ध बनाए रख सके, उसी प्रकार हमें भी अपने
जीवन को शुद्ध बनाना है। याद रखिए, आपने भी मुनिराजों के मुखारविन्द
से महावीर की मंगल-देशना सुनी है। आप भी इसी प्रकार दृढ़ संकल्पी बनें ... और किसी भी विरोधी वातावरण में रहकर भी अपनी धर्मभावना में अन्तर न
आने दें। आज आपके जीवन में जो धर्मभाव उदित हुआ है व हो रहा है, वह स्थिर रहे और बढ़ता जाय, यही जीवन के अभ्युदय का राजमार्ग है। .