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[ २६ के हरण को अपराध मानते हैं तो क्या प्राणहरण अपराध नहीं हैं ? वास्तव में प्राण हरण सबसे बड़ा अपराध है, क्यों कि जीवों को प्रारण सब से अधिक प्रिय है। बड़े से बड़े साम्राज्य के बदले में भी, यहां तक कि त्रैलोक्य की प्रभुता के बदले में भी, कोई अपने प्राण देने को तैयार नहीं होता।
.. यदि सर्वतोभावेन आत्मस्वरूप की ओर गति करने का लक्ष्य है तथा . निज गुणों की रक्षा करनी है तो सभी प्रकार की हिंसा से बचना चाहिए। जैसे मनुष्य की हिंसा को गहित समझा जाता हैं, उसी प्रकार मनुष्येतर प्राणियों की हिंसा को भी त्याज्य समझना चाहिए।
. आज हमारे देश में, राजनीतिक क्षेत्रों में भी अहिंसा की चर्चा होती .. है। भारतीय शासन भी अहिंसा की दुहाई देता है। मगर समझ में नहीं प्रात्ता
कि. वह कैसी अहिंसा है ! जो सरकार मांस, मछली और अंडे खाने का प्रचार करती है, तो कहना चाहिए वह सही रूप में अहिंसा को समझती ही नहीं, राजनोतिज्ञों की अहिंसा संभवतः मानव प्राणी तक ही सीमित है। मानवेतर प्राणी अपनी रक्षा के लिए पुकार नहीं कर सकते, संगठित होकर आन्दोलन नहीं कर सकते, असहयोग और सत्याग्रह करने का सामर्थ्य उनमें नहीं है, वे शासन को हिला नहीं सकते और उनसे किसी को 'वोट' लेने का स्वार्थ नहीं है, क्या इसी कारण वे अहिंसा और करुणा की परिधि से बाहर हैं ? यदि यह सत्य है तो स्वार्थ एवं भय पर आधारित अहिंसा सच्ची अंहिसा नही है। वह अहिंसा धर्म और नीति नहीं है—मात्र पॉलिसी है।
. मगर याद रखना चाहिए कि जब तक प्राणी मात्र के प्रति अहिंसा . और करुणा का दृष्टिकोण नहीं अपनाया जाएगा तब तक मानव-मानव के प्रति भी अहिंसा का पालन नहीं कर सकेगा। पशुओं और पक्षियों की हिंसा करने वाले में हिंसा के प्रति झिझक नहीं रहती और कभी भी वह मनुष्यों की हिंसा । कर सकता है । राजनीतिक क्षेत्र में अहिंसा संबंधी आन्दोलन की अब तक की असफलता का यही मुख्य कारण है। अधूरी अहिंसा की प्रतिष्ठा नहीं की जा .. सकती । हिंसा के संस्कारों को मनुष्य के मस्तिष्क से तभी दूर किया जा सकता .: है जब मनुष्य और मनुष्येतर सभी प्राणियों की हिंसा को पाप समझा जाय और