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... [३६५ जब आधुनिक काल के सन्तों का भी हम प्रामाणिक परिचय प्राप्त नहीं कर पाये तो प्राचीनकाल के सन्तों का तथ्यपूर्ण इतिहास पाता. कितना कठिन है, इस बात का सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है। . .............
भद्रबाहु स्वामी आदि प्राचीनकालिक. महर्षि हैं। उनके संबंध में पूर्ण - प्रामाणिक इतिहास प्रस्तुत होना चाहिए। जहां तक भद्रबाहु का सम्बन्ध है, निःसंकोच कहा जा सकता है कि शासन सेवा में उनका योग. असाधारण रहा है। स्थूलभद्र ने उत्कृष्ट संयमपालन का उज्ज्वल उदाहरण हमारे समक्ष प्रस्तुत किया। प्राचार्य संभूतिविजय के चरणों में रहकर उन्होने अपूर्व काम विजय की । सिंह का रूप धारण करने की एक बार भूल अवश्य होगई किन्तु दूसरी वार कभी भूल नहीं की। ... ... ..
भद्रवाहु के पश्चात् कौन उनका उत्तराधिकारी हो? इस प्रश्न पर जब विचार हुआ तो स्वयं भद्रबाहु ने कहा-स्थूलभद्र ही उत्तराधिकार प्राप्त करने ..
के लिए सबसे अधिक उपयुक्त हैं। उनसे बढ़कर कोई परमयोगी नहीं है। इस * प्रकार भद्रबाहु के बाद स्थूलभद्र ही उनके उत्तराधिकारी हुए। उन्होंने बड़ी
योग्यता के साथ शासनसेवा की। यौगिक साधना के साथ श्रुत की भी साधना की।
- कहाँ राजस जीवन वाला स्थूलभद्र और कहां परमकायविजेता स्थूलभद्र ! .. वह अपने महान् प्रयत्न से कहाँ से कहाँ पहुँच गए ! मनुष्य जब पवित्र चित्त
और दृढ़ संकल्प लेकर ऊपर चढ़ने का प्रयत्न करता है तो सफलता उसके चरण चूमती है। .
.. :: आज देश संकट में से गुजर रहा है। संकट भी साधारण नहीं है।
प्रत्येक देशवासी को यह संकट महसूस करना चाहिए और उससे किसी भी प्रकार का लाभ उठाने का प्रयत्न नहीं करना चाहिए। यह काल मुख्य रूप से ‘राष्ट्र धर्म' के पालन का है। देश की रक्षा पर हमारे धर्म, संस्कृति, साहित्य