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________________ पद्य में ही इस श्लोक का अर्थ इस प्रकार है-.. - कोई बुरा कहो या अच्छा, . .... .. ... ... ... लक्ष्मी प्रावे या जावे। . . .. - लाखों वर्षों तक जीऊ या, ___ मृत्यु आज ही आ जावे। ...... अथवा कोई कैसा ही भय, . . . . . ....... . .. या लालच देने आवे। ... . तो भी न्यायमार्ग से मेरा, : : . . कभी न पथ डिगने पाये। वत साधना मरण सुधार की तुदृढ़ भूमिका है, क्योंकि व्रत साधना के लिए पर्याप्त समय मिलता है। मरणं के समय के क्षण थोड़े होते । अतएव उस समय प्रायः पूर्वकालिक साधना के संस्कार ही काम आते हैं। अतएवं - साधक को अपने व्रती जीवन में विशेष सावधान रहना चाहिए। - इन पांच अतिचारों की वृत्तियाँ जीवन में एवं व्रताराधना में मलीनता न उत्पन्न होने दें तो साधक महान् कल्याण का भागी होता है । एक बार की - मृत्यु विगाड़ने में जन्म-जन्मान्तर बिगड़ जाता है और मृत्यु सुवारने से मोक्ष का " द्वार खुल जाता है । छात्र वर्ष भर मिहनत करके भी यदि परीक्षा के समय.. । प्रमाद कर जाय और सावधान न रहे तो उसका सारा वर्ष बिगड़ जाता है। मरण के समय प्रमाद करने से इससे भी बहुत अधिक हानि उठानी पड़ती है । . इसी कारण भगवान् ने पांच दोषों से बचने की प्रेरणा की है। .. - ब्रतों के समस्त अतिचारों से बचने वाला व्रती गृहस्थ भी अपने जीवन को निर्मल बना सकता है। अतएव जो शाश्वतिक सुख के अभिलाषी हैं . उन्हें निरतिचार व्रत पालन के लिए ही सचेष्ट रहना चाहिए।
SR No.010710
Book TitleAadhyatmik Aalok Part 03 and 04
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHastimal Maharaj, Shashikant Jha
PublisherSamyag Gyan Pracharak Mandal
Publication Year
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Spiritual, & Discourse
File Size23 MB
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