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___ भंडार दृष्टिगोचर होता है, जिसकी तुलना में जगत् के वहुमूल्य से बहुमूल्य
पदार्थ. भी तुच्छ और निस्सार लगते हैं। वह अपनी ही आत्मा में अनिर्वचनीय आनन्द का अपार सागर लहराता हुआ देखता है । उस आनन्द की तुलना में विषय-जनित आनन्द नगण्य और तुच्छ प्रतीत होता है। .
.. इस प्रकार की अन्त दृष्टि प्रत्येक प्राणी में जागृत हो सकती है, मगर उसके जीवन में विद्यमान दोप उसे जागृत नहीं होने देते । अतएव यह आवश्यक है कि उन दोपों को समझने का प्रयत्न किया जाय । इसी दृष्टि से यहां उनका विवेचन किया जा रहा है। ऐसे मूलभूत दोष पांच हैं जिनमें से तीन का सातिचार वर्णन किया जा चुका है।
स्वदार सन्तोष और स्वपति सन्तोष-जगत् के जीवों में. चाहे वे मनुष्य हों अथवा मनुप्येतर काम वासना या मैथुनवृत्ति युगल पाई जाती है। - मिथुन का अर्थ है जोड़ा (युगल)। मिल कर जो कार्य करते हैं, वह मैथुन कह. लाता है । तथापि मैथुन शब्द काम वासना की पूत्ति के उद्देश्य से किये जाने
वाले कु कृत्य के अर्थ में रूढ़ हो गया है अतः इसे 'कुशील' भी कहते हैं। मोह के वशीभूत हो कर कामुकवृत्ति को शान्त करने की चेष्टा करना मैथुन है। काम वासना की प्रबलता होने पर मनुष्य विजातीय प्राणियों के साथ भी भ्रष्ट होता है । . .
. . मैथुन के अठारह भेद किये गये हैं । मैथुन क्रिया आत्मिक और शारीरिक शक्तियों का विघात करने वाली है। इससे अनेक प्रकार के पापों की परम्परा का जन्म होता है । जिस मनुष्य के मस्तिष्क में काम संबंधी विचार ही चक्कर काटते रहते हैं, वह पवित्र और उत्कृष्ट विचारों से शून्य हो जाता है। उसका जीवन वासना की आग में ही झुलसता रहता है । व्रत, नियम, जप, तप, ध्यान स्वाध्याय और संयम आदि शुभ क्रियाएं उससे नहीं हो सकतीं । उसका दिमाग सदैव गंदे विचारों में उलझा रहता है । पतित भावनाओं के कारण दिव्य भावनाएं पास भी नहीं फटकने पाती। अतः जो पुरुष साधना के मार्ग
पर चलने का अभिलाषी हो उसे अपनी काम वासना को जीतने का सर्व प्रथम . - प्रयास करना चाहिए।. ... .