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२६० ___कई दिनों से जो कथानक रुक गया है, उस ओर भी ध्यान देना है। बतलाया ना चुका था कि प्राचार्य संभृतिविजय का स्वर्गवास हो गया और दुस्संवाद सुनकर महामुनि भद्रबाहु नैपाल से लौट आए । स्थूलभद्र भी साथ माए ! उत्तकी सातों भूगिनियाँ स्थूलभद्र के दर्शनार्थ पाई। वे एकान्त में : साधना कर रहे थे। उस समय प्राचार्य भद्रबाहु ने कहा-चाहो तो उनके दर्शन कर सकती हो।
मिलिया तो दर्शन करने के लिए उत्कंठित थी ही, साथ ही उन्हें यह जानने की भी.बड़ी अभिलाषा थी कि देखें मुनिराज स्थूलभद्र केसी साधना .. कर रहे हैं ? अब तक उन्होने क्या अभ्यास किया है ? क्या स्थिति है उनकी ? - इस प्रकार की उत्कंठा और प्रेरणा से वे स्थूलभद्र के पास पहुंची।
उधर स्थूलभन्न ने अपनी भगिनियों को प्राती देख विचार कियाइन्हें कुछ चमत्कार दिखलाना चाहिए। मैंने जो कुछ प्राप्त किया है, उसमें से जो कुछ दिखलाने योग्य हैं, उसकी बानगी दिखला देना चाहिए। अन्यथा इन्हें कैसे पता चलेगा कि नेपाल जैसे दूर देश में जाकर मैंने क्या प्राप्त किया। है ? इस प्रकार विचार करके स्थूलभद्र सिंह का रूप धारण करके गुफा के द्वार पर बैठ गए। . . . . . . . . . . . . .
. ... भगिनियाँ बड़ी उत्कंठा के साथ महासाधक स्थूलभद्र के दर्शन को जा रही थीं । एकान्त, भयानक एवं जनहीन वन्य प्रदेश था। मगर तपोव्रती जिस वन प्रदेश में निवास करता है उसकी भयानकता कम हो जाती है, यहां तक कि एक बालक भी वहीं जा सकता है । सोध्वियां निर्भय होकर उसी ओर चली
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- योगसाधना का सव . बड़ा विघ्न लोषणा है । योग की साधना करतेकरते साधक में अनेक प्रकार की विस्मयजनक शक्तियां उत्पन्न हो जाती है ।
योग शास्त्र के कर्ता प्राचार्य हेमचन्द्र ने योग के माहात्म्य को प्रदर्शित करते ... हुए लिखा है- ... ... .. ... ..