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२८६ ] हो, वह सब व्यापार प्रशस्त कहलाता है। साथ ही उस समय 'मैं सामायिक व्रत की आराधना कर रहा हूँ' यह बात भूलना नहीं चाहिए। यह सामायिक का भूषण है, क्योंकि जिसे निरन्तर यह ध्यान रहेगा कि मैं इस.. समय सामायिक में हूँ, वह इस व्रत के विपरीत कोई प्रवृति नहीं करेगा। इसके ... विपरीत सामायिक का मान न रहना दूषण है । सामायिक के समय भी वैसा ही बोलना जैसा अन्य समय में बोला जाता है या अन्य कार्य करना, यह अनुचित है । इसी प्रकार सामायिकं व्रत का पाराधन व्यवस्थित रूप से करना : श्रावक का परम कर्तव्य है । इसका तात्पर्य यह है कि सामायिक व्रत में जिन .. मर्यादाओं का पालन करना आवश्यक है, उन्हें पूरी तरह ध्यान में रक्खा जाय और पालन किया जाय।
__सामायिक के उक्त पांचों दोषों से ठीक तरह बचाया जाय और भावपूर्वक, विधि के साथ, सामायिक का आराधन किया जाय तो जीवन में समभाव की वृद्धि होगी और जितनी समभाव की वृद्धि होगी. उतनी ही. निराकुलता एवं शान्ति बढ़ेगी।
__ श्रावक का नौवां व्रत देशावकाशिक है । यह व्रत एक प्रकार से दिग्नत में की हुई मर्यादाओं के संक्षिप्तीकरण से सम्बन्ध रखता है। दिग्व्रत में श्रावक ने जीवन भर के लिए जिस-जिस दिशा में जितनी-जितनी दूर तक
आवागमन करने का नियम लिया था, उसे नियतकाल के लिए सिकोड़ ' लेना... ... देशावकाशिक व्रत है। उदाहरणार्थ-किसी श्रावक ने पूर्व दिशा में पांच सौ .
मील तक जाने की मर्यादा रक्खी है। किन्तु आज वह मर्यादा करता है कि ... में बारह घन्टों तक पचास मील से अधिक नहीं जाऊंगा- तो यह देशावकाशिक व्रत कहलाएगा।
__ इस व्रत का उद्देश्य है आशा-तृष्णा को घटाना और पापों से बचना । की हुई मर्यादा से बाहर के प्रदेश में हिंसा आदि पापों का परित्याग .. स्वतः हो जाता है और वहां व्यापार आदि करने का त्याग हो जाने के कारण .... सृष्णा का भी त्याग हो जाता है।