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२७७] थी, पौषधं व्रत अंगीकार किया। उन्हें परमप्रभु की अन्तिमकालिक सेवा - का सौभाग्य मिला। अन्तिम समय में, स्वाति नक्षत्र के योग में कात्तिकी अमावस्या के दिन प्रभु निवारण को प्राप्त हुए । जिन्हें उस समय प्रभु की सेवा का अवसर मिला, वे धन्य हैं। . . . .
.. ... प्रश्न हो सकता है-वीतराग की सेवा किस प्रकार की जा सकती है ? वीतराग के निकटं पहुंच कर उनकी इच्छा के विपरीत कार्य करना सेवा नहीं है । उनके गुणों के प्रति निष्कपट प्रीति होना, प्रमोदभाव होना और उनके द्वारा उपदिष्ट सम्यक् ज्ञान दर्शन और चारित्र के मार्ग पर चलना ही वीतराग की सच्ची सेवा हैं।
.:. .. .., :. . - मगर आज परिस्थिति यह है कि पूजक अपने पूज्यं को अपने रंग में ढालना चाहता है । जिसकी जैसी दृष्टि या रुचि है, वह उसी के अनुरूप देव के स्वरूप की कल्पना कर लेता है। राजस्थान, बंगाल और उत्तर प्रदेश में ठाकुरजी का रूप अलग-अलग प्रकार का मिलेगा। राजस्थानी लोग सीता को घाघरा पहनाएंगे तो बंगाली और बिहारी भक्त साड़ी से सुशोभित करेंगे। सीता वास्तव में किस वेश में रहती थी, इस तथ्य को जानने का परिश्रम किसी को नहीं करना है । जैनों में श्वेताम्बरों के महावीर अलग प्रकार के होंगे और दिगम्बरों के महावीर अलग प्रकार के । महावीर की आत्मा को पहचानना
और उससे प्रेरणा प्राप्त करना ही वास्तव में महावीर की पूजा है । साम्प्र... दायिक रंग में रंगने से महापुरुषों का रूप बदल जाता है। आश्चर्य की बात .. तो यह है कि यहः खींचतान जानकारों में अधिक है, अज्ञान लोगों में नहीं। : यदि उपासना का मूल आधार गुणाः मान लिया जाय तो सारी विडम्ब
नाएं समाप्त हो जाए । 'गुणा पूजास्थानम्', इस उक्ति को कार्यान्वित करने की .. आवश्यकता है । महावीर में अनन्त ज्ञान, दर्शन एवं वीतरागता है । जगत् के प्रत्येक प्राणी पर उनका समभाव है । इन गुणों को अगर हम आदर्श मानकर भगवान् की उपासना करें और अपने जीवन में विकसित करने का प्रयत्न करें - तो किसी प्रकार का संघर्ष ही उत्पन्न न हो । इन गुणों की प्राप्ति के लिए जो ... - साधना करेगा उसकी साधना निराली ही होगी। ..:. ::::.
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