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जो नास्तिक आत्मा का पृथक् प्रास्तित्व स्वीकार नहीं करते और यह समझते हैं कि शरीर के साथ आत्मा भी खत्म हो जाता हैं, उनके लिए हायहाय करते हुए मरने के सिवाय और कोई मार्ग नहीं ! जब उनका अन्तिम समय सन्निकट आता है और जब उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि मेरा अस्तित्व सदा के लिए समाप्त हो रहा है और मैं ऐसे अन्धकार में विलीन हो रहा हूं... जिसका कदापि अन्त पाने वाला नहीं है, तो उन्हें अंतिशय उद्वेग एवं दुःख . होना स्वाभाविक है । इस प्रकार प्रास्तिक और धर्मनिष्ठ व्यक्ति के समक्ष उज्ज्वल भविष्य होता है जबकि नास्तिक के सामने निराशा का सघनतम तिमिर । नास्तिक शान्तिपूर्वक हंसता हुआ प्राण त्याग करता है। नास्तिक विलाप करता हुआ मरता है।. .:...:.::.:. ..
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भगवान् महावीर मृत्युञ्जय थे। उन्होंने आध्यात्मिक जगत् की चरम सिद्धि प्राप्त की। अपने साधनाकाल में उन्होंने अज्ञानान्धकार का भेदन किया। - प्रत्येक स्थिति में समभाव धारण किये रक्खा। सुषुप्त जनों की आत्मा को
जागृत किया और अन्त में मुक्ति प्राप्त की। . ... भगवान् के चरित को पढ़ने और सुनने वाले के अन्तःकरण में उत्कंठा .. ... . जागृत होती है कि हम भी निर्वाण प्राप्त करें। भगवान् ने कहा है कि सभी .. ... जीव समान हैं, अतएव जैसे वे निर्वाण प्राप्त करने में समर्थ हुए वैसे हम भी .
समर्थ हो सकते हैं। इस विचार से साधक को साहस और घेर्य प्राप्त होता
है। कर्मपाश से मानव मुक्त नहीं हो सकता; इस भ्रमपूर्ण विचार का - निरसन हो जाता है । शंका का कोई कारण नहीं रहता। .. .. निर्वाण से पूर्व महावीर स्वामी ने पौद्गलिक भावों का परित्याग कर . .. दिया, आहार-यांनी का त्याग कर दिया और कर्मपुद्गलों को निकाल देने की
साधना बढ़ा दी। वे दिन और रात्रि में सारे संमय देशना करते रहे। अन्तिम समय उनके प्रशममय प्रवचन की धारा बह रही थी। सबके लिए उस धारा में अवगाहन करने की छूट थी। उस दिन राजा चेटक ने पौषध व्रत की आराधना की। मल्ली और लिच्छवी राजाओं ने भी, जिनकी संख्या अठारह